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नीति-वचन-17

नीति-वचन(चौपाइयाँ)-17
मधुर बोल अरु मधु मुस्काना।
सदा न सज्जन रह पहिचाना।।

तिलक-छाप अरु चंदन माथे।
गर रुद्राच्छ कमंडल हाथे।।

एकमात्र नहिं संत-निसानी।
कबहुँ-कबहुँ अस दुर्गुन-खानी।।

जहँ रह काँट पुष्प तहँ बिगसै।
दुर्दिन गाढ़ तेज-बल बिकसै।।

इस्वर-सत्ता कन-कन माहीं।
जे अस जानै संत कहाहीं।।

धन-घमंड,ग्यान-अभिमाना।
जानै नहिं महिमा-भगवाना।।

कपट-कुटिलता असुर-सुभावा।
कबहुँ न समुझै प्रभू-प्रभावा।।

बालक-सरल-अबोध-प्रवृत्ती।
कहहिं संत अस प्रभु कै वृत्ती।।

बिनु छल-कपट-दम्भ-अभिमाना।
बाल-सुभाउ बास भगवाना।।

दोहा-भ्रमित करै माया सबहिं,जदि नर नहीं सचेत।
         ब्यर्थ जागरन होय जब,चिरई चुग गइ खेत।।
                        डॉ0हरि नाथ मिश्र
                         9919446372

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1 Comments

Babita patel

01-May-2024 07:15 AM

Awesome

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