नीति-वचन-22
*नीति-वचन*-22
अहहिं नरायन ग्यान-भँडारा।
"नार"ग्यान अरु"अयन"अगारा।।
नारायन पय-सिंधु निवासा।।
जहँ नहिं राग-द्वेष कै बासा।।
मेटवै ग्यान राग अरु द्वेषा।
उर्जानंत ग्यान अहि-सेषा।।
चलै न बिधि-गति पे कछु जोरा।
महिमा नाथ न ओरा-छोरा।।
जल मा अगिनि,अगिनि मा जोती।
सीपी- गरभ रहइ जे मोती।।
काँटहिं पुष्प,पुष्प मा बासा।
जल-थल-नभ मा नाथ-निवासा।।
अत्र-तत्र-सर्वत्र बिराजै।
कन-कन मा प्रभु-सत्ता छाजै।।
भगति न संभव भाव-अभावा।
मिलैं न प्रभु बिनु भगति-प्रभावा।।
बिनु सतसंगति होय न ग्याना।
चहुँ-दिसि होय संत- सम्माना।।
पा सतसंगति सुधरहिं लोंगा।
जस पा औषधि संकट-रोगा।।
संकट कटै भजन भगवाना।
बड़े भागि जग मिलैं सुजाना।।
दोहा-भगत औरु भगवान कै, जीव-ब्रह्म जस मेल।
जानहिं बस ग्यानी-मुनी,ई रहस्य कै खेल ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Gunjan Kamal
03-Jun-2024 05:06 PM
👏🏻
Reply