Vinita gupta

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मन

मन
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घटाओं सा घिरता रहा आज घन,
बरसने को उद्यत  रहा आज मन ।

कहीं भावनाओं का, सैलाब आया,
कहीं वेदनाओं से घिरता भी पाया,
जूझता भी रहा, और सिसकता रहा,
भीड़ में  खुद को अकेला ही पाया।

उलझता रहा एक डोर से  दूसरा,
 पर अलग हो न  पाई मन कीअगन।
बरसने को..…….

बिखरता रहा,मौन होकर सदा,
कही न कभी अपने मन की व्यथा,
कंटको से उलझ बींधता ही रहा,
अनकही और अधूरी रही वो कथा।

पूर्ण करने को अपने अधूरे सपन,
चल पड़ा है लिए आश की अब लगन।
बरसने को......…

कामनाओं की अक्षत रोली लिए,
पुष्प माला समर्पित वो करने चला,
राह आये  जो आंधी और तूफान भी,
काल आकर  रोके  जो रस्ता भला,

न थका है ,कभी न थकेगा विहग,
उड़ चला है न होगी कहीं ,अब थकन।।
बरसने को.....
विनीता गुप्ता स्वरचित मौलिक

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2 Comments

Gunjan Kamal

03-Jun-2024 01:22 PM

👏🏻👌🏻

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HARSHADA GOSAVI

31-May-2024 08:18 AM

Amazing

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