स्वैच्छिक
🌹🌹🌹🌹ग़ज़ल 🌹🌹🌹🌹
तिरे इ़श्क़ में बाख़ुदा हंसते-हंसते।
निभाएंगे अ़हद-ए-वफ़ा हंसते-हंसते।
सुना तो दी तू ने सज़ा हंसते-हंसते।
ख़ता भी बता दे ज़रा हंसते-हंसते।
क़सम से ज़रा भी बुरा हम न मानें।
अगर दे हमें तू दग़ा हंसते-हंसते।
दिखाता है जो हर घड़ी आईने को।
हमें भी वो जलवे दिखा हंसते-हंसते।
निकल जाएगी जान जान-ए-तमन्ना।
निगाहें न ऐसे चुरा हंसते-हंसते।
हमें उसकी यह ही अदा मार देगी।
वो करता है बातें सदा हंसते-हंसते।
फ़राज़ आज कैसी ग़ज़ल तू ने छेड़ी।
हुआ ह़ाल सबका बुरा हंसते-हंसते।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ पीपलसानवी।
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RISHITA
05-Jun-2024 01:59 PM
Awesome
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