काग़ज
मंज़िल न ढूँढ़ पाई,
पहली बरखा आई,
तारिणी थी काग़ज की,
पानी में बह गई।
पुष्प गुच्छ गुथ गए,
गुलदान सज गए,
कुसुम थे काग़ज के,
गंध ही रूठ गई।
साहिल बड़ी दूर था,
तूफ़ान को गुरूर था,
सरिता का दोष नहीं,
नैया ही छल गई।
वन वृक्ष कलम से,
समुद्र जल मसि से,
धरती पर “श्री” हिंद,
महिमा रच गई।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Sarita Shrivastava "Shri"
13-Jun-2024 10:48 PM
👌👌
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