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मुक्ति

ये जीवन काँटों की बांहें,

पग-पग पथरीली राहें।
भटक गए जग की माया में,
भूल कर दर्दीली आहें।

स्वार्थ की दलदल गहरी है,
न कोई मन का प्रहरी है,
भुला दिए वादे साजन के,
दुनिया गूंगी बहरी है।

जंजीरें कसती ही जाए,
नज़र न छुटकारा आए।
अजीब है जग का ये बंधन,
काया धसती ही जाए।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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2 Comments

Anjali korde

16-Jun-2024 11:57 PM

Awesome

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Sarita Shrivastava "Shri"

15-Jun-2024 11:38 PM

👌👌

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