मुक्ति

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ये जीवन काँटों की बांहें, पग-पग पथरीली राहें। भटक गए जग की माया में, भूल कर दर्दीली आहें। स्वार्थ की दलदल गहरी है, न कोई मन का प्रहरी है, भुला दिए ...

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