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बेखबर

              *-बेख़बर -*

बह्र - 212 212 212 212

आशिकों की कमाई ग़मों का रहा हर तमन्ना अधूरी दिलों का रहा ।

ए सड़क ए गली रात भर शोर की बेख़बर ज़िंदगी मनचलों का रहा।

तोड़ दी दम यहाँ देख जज़्बात भी शान शौक़त यहाँ कायरों का रहा।

बेवज़ह ही जिए जा रहा आदमी बोझ अपनी कहाँ दूसरों का रहा।

बैठ कर पीठ पे हाथ फेरा कभी आँसुओं का क़दर कुछ पलों का रहा।

है सभी को पता किस्त की ज़िंदगी वक़्त अपना कभी नेकियों का रहा।

आज मचलने लगी धड़कनें बारिशों को ख़बर इन ख़तों का रहा।

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