ग़ज़ल
🌹🌹🌹🌹* ग़ज़ल * 🌹🌹🌹🌹
ह़सीन रुख़ पे ये ज़ुल्फ़ें जो तुम ने डाली हैं।
हमारी क़ैदे-क़फ़स की यही तो जाली हैं।
हमारे ह़ाल पे हंसते हैं ख़ार गुलशन के।
तुम्हारे ह़ुस्न की क़ायल गुलों की डाली हैं।
सजा लें आओ मिरी जां ग़रीब-ख़ाने को।
तुम्हें भी वक़्त है और हमभी आज ख़ाली हैं।
इन्हीं में उलझी है मेरे ख़याल की दुनिया।
तुम्हारे शानों पे काकुल जो काली-काली हैं।
करें वो क्यों न भला पढ़ के वाह वा इनको।
तमाम रात ये ग़ज़लें उन्हीं पे ढाली हैं।
सुकून जिनको है ससुराल में भी पीहर सा।
वो बेटियां ही जहां में नसीब वाली हैं।
फ़राज़ आज भी टाला तो क्या हुआ बोलो।
तुम्हारी बातें तो पहले भी उसने टाली हैं।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ पीपलसाना मुरादाबाद।
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hema mohril
26-Mar-2025 05:06 AM
fantastic
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kashish
09-Feb-2025 02:12 AM
👌👌
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