नाकारा
इक बोझ तले मैं ज़िंदा हूँ।
नहीं आज़ाद परिंदा हूँ।
फिर भी तेरी आँखों में
आदमी नहीं दरिंदा हूँ।
सब-रिश्ते नाते छोड़ दिए।
सब-क़स्मे वादे तोड़ दिए।
फिर भी तेरी आँखों में
आदमी नहीं दरिंदा हूँ।
सबको पीछे छोड़ दिया।
उल्फत की चादर को ओढ़ लिया।
जहाँ कहीं भी तुम निकले,
हमने वहीं रुख मोड़ लिया।
फिर भी तेरी आँखों में
आदमी नहीं दरिंदा हूँ।
दिल अपना भुलाना मंज़ूर हुआ।
सिर पे बस तेरा सुरूर हुआ।
क्या मुझसे ऐसा क़ुसूर हुआ,
कि आज भी तेरी आँखों में
आदमी नहीं दरिंदा हूँ।
इक बोझ तले मैं ज़िंदा हूँ।
नहीं आज़ाद परिंदा हूँ।
फिर भी तेरी आँखों में
आदमी नहीं दरिंदा हूँ।
hema mohril
26-Mar-2025 04:56 AM
amazing
Reply