Sapna shah

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नारी

टूटकर बिखर जाऊँ ,हारकर बैठ जाऊँ
मैं वो नहीं ...
उम्मीद का दामन छोड़ दूँ,मुश्किलों से भाग जाऊँ 
मैं वो नहीं ...
किस्मत से लडकर ,जीतना है मुझको 
अंधेरों में भी दीप बनकर ,जलना हैं मुझको 
बार बार कहा मिलती हैं जिदंगी, 
मरकर भी दिलों में जिंदा,रहना है मुझको 
सदियों से चली रित को बदलना है ,
नारी हूँ पर इन्सान हूँ ,जमाने को बताना हैं मुझको 
आम हूँ पर खास हूँ 
हाँ, मैं नारी हूँ...
हारी नहीं पर सब पर भारी हूँ ,
मै नारायणी,मैं दुर्गा ,मैं चंडी का रूप हूँ ,
मैं महाशक्ति का स्वरूप हूँ ,
मैं अबला नहीं सबला हूँ ...
मैं वो नहीं...
जो तुम समझते हो  ...।।।


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8 Comments

Natash

07-Apr-2021 10:17 AM

Good kavita mam

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Sapna shah

07-Apr-2021 10:14 PM

Thanks😊

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Aliya khan

05-Apr-2021 05:03 PM

Nice

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Sapna shah

05-Apr-2021 10:09 PM

Thank u 😊

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Archana Tiwary

04-Apr-2021 08:27 PM

अच्छी रचना

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Sapna shah

05-Apr-2021 10:10 PM

Thank u😊

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