बचपन
वो खपरैल का घर,
वो मिट्टी की गंध,
उन मीठी बातों को लौटाओ ना।
ओ मेरे बचपन! तुम लौटकर आओ ना।
वो गौरैया की धुन,
उस गिलहरी के संग,
उन संगी-साथियों को बुलाओ ना।
ओ मेरे बचपन! तुम लौटकर आओ ना।
वो दादी की कहानियाँ,
वो माँ की लोरियाँ,
उन चैन की नींदों को लौटाओ ना।
ओ मेरे बचपन! तुम लौटकर आओ ना।
वो पापा का दुलार,
वो भाइयों का प्यार,
फिर से सबको पास ले आओ ना।
ओ मेरे बचपन! तुम लौटकर आओ ना।
ऊब गया है मन इस भागदौड़ से,
ज़िंदगी से लड़ते-लड़ते,
वो सुकूं भरा दिन लौटाओ ना।
ओ मेरे बचपन! तुम लौटकर आओ ना।
-दीक्षा शर्मा
गोरखपुर