Sakshi

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प्यार

अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए। 
जिसकी खुशबु से महक जाए पड़ोसी का भी घर ऐसा फूल हर रोज खिलाया जाए।।
आग बहती है गंगा में झेलम में कोई बतलाए कहाँ जाकर नहाया जाए। 
मेरे दुख दर्द का तुझ पर हो असर ऐसा 
मैं भूखी रहूँ तो तुझसे भी ना खाया जाए। । 
प्यार का खून हुआ क्यों ये समझने के लिए हर अंधेरे को उजालों में बुलाया जाए।
जिस्म दो हो कर भी दिल एक हो अपने ऐसे मेरे आँसू तेरे पलकों से उठाया जाए।।

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2 Comments

Punam verma

22-Nov-2021 11:14 PM

कवि नीरज जी की शानदार रचनाओं में से एक... फिर यह आपकी कैसे हुई...??

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Seema Priyadarshini sahay

22-Nov-2021 09:54 PM

👌👌

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