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जब आन घटा बरसे

जब आन घटा बरसे!

जब आन घटा बरसे! निज मान को प्राण दो
परमार्थ मन तरसे, अभिमान सदा को त्याग दो।

पल भर का है साथ तेरा, थोड़ी दूरी तक है रास्ता
अब चलना यही तक है, देती डगर ये वास्ता।

संसार के सुख से उबरकर, सुखसागर का ज्ञान लो
क्यों जिये यूँ गुमशुदा, उस सर्वशक्तिमान को जान लो।

काहे झूठी लगे दुनिया, काहे मोह लगे पाश सा
सब टूटे- सब बिखरे, अरे झूठा भरम ये काँच सा।

नही बिखरो तुम तरल तप, महाशक्ति को संज्ञान लो
अरे कण-कण में विराट है, विराजमान ये जान लो।

अष्टफलक और दसों दिशा में, ज्योति उसकी आश की
अब नही तरसाओ और पिया, परीक्षा न लो विश्वास की

सब रंग रूप-सब मोह-पाश, जग का त्याग कर आया आज
नही अब है कोई तेरे सिवा, तुझको ही सबकुछ बनाया आज

मेरा तू है, अरे तेरे सिवा अब कौन मेरा! हृदय पुकारे आन को
हे प्रियतम तुम हो सब मेरे, मुझे अपनी बाँहो में थाम लो।

जब आन घटा बरसे! निज मान को प्राण दो
परमार्थ मन तरसे, अभिमान सदा को त्याग दो।

#MJ

#प्रतियोगिता



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5 Comments

Niraj Pandey

25-Nov-2021 07:06 PM

बहुत खूब

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Swati chourasia

25-Nov-2021 07:05 PM

Very beautiful 👌

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Archana Verma

25-Nov-2021 07:05 PM

वाह बहुत बहुत सुंदर

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