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बेबस

भागा भागा फिरता हूँ यहां से वहां,
न आराम न सुकून है जहां।
निकल जाता हूं,
यूं ही अनजान राहों पर।
न हमसफर न हमराह कोई
बस अपने जिस्म का,
बोझ लिए चलते साथी।
चमक खो ही जाती,
घिस घिस के पत्थर से,
मुरझा जाता है फूल भी,
जीवन की चाक में पीस के।
सपने खो गए, है अरमान अधूरे,
मेला लगा उम्मीदों का,
जो हो न सके पूरे।
तीर सभी चूक गए,
खाली है तरकस।
पथराई आंखे दिखती है बेबस।


©️  ✍️  नवेन्दु

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2 Comments

Sundar rachna

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Seema Priyadarshini sahay

05-Dec-2021 01:56 AM

वाह

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