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ताज़महल


ताजमहल


कितनी सदियाँ बीत गईं , कितने जमाने बदल गए।
मोहब्बतों के न जाने कितनेे, अफसाने बदल गए।

कितनीे  बदलीं रियासतें, कितने शहंशाह गए बदल।
यमुना के किनारे आज भी ,शान से खड़ा है ये महल़।

जाने किस जहां से यह ,इतना सुंदर महल आया।
शायद  इसे विधाता ने,अपने  हाथों से है सज़ाया।

यमुना लेती रहती हिलोरें ,इस पुराने महल के पास।
इसे देख लगता यही है ,इसमें ज़रूर ,कुछ है ख़ास।

श्फ़ाक पत्थरों से बना ,मानो स्वर्ग की हो कल्पना।
 इसके हर पत्थर सुनाते, प्यार की नायाब़ दास्तान।

यह   कोई आम महल है या, किसी प्रेमी का ठिकाना।
सौन्दर्य से परिपूर्ण,नज़रो को करे तृप्त इसका हरकोना।

कौन था वह दिलदार, किसकी खातिर इसे बनवाया ।
प्यार के इस घरौंदे को ,कितनी बारीकी से सजाया।।

अभिभूत हो जाते हैं जो भी देखते हैं इसे एक नजर।

रश्क होता है सभी को, उन दो प्रेमियों के प्रेम पर।

इसके  बिना रह जाता शायद, धरा का एक कोना सूना।

देते  मिसालें लोग इसके सौंदर्य की, किसी से है ये सुना।

है प्रेम की अमर  कहानी, ये दो प्रेमियों  का महल ।
प्रेम की ये अमर गाथा,जिसे कहते है ताज महल

स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'
नउ दिल्ली

प्रतियोगिता के लिये

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6 Comments

Kavita Gautam

07-Dec-2021 02:07 PM

बहुत बधाई आपको मैम।

Reply

Seema Priyadarshini sahay

07-Dec-2021 01:58 PM

आपका जवाब नहीं मैम। बधाई आपको

Reply

Renu Singh"Radhe "

07-Dec-2021 01:19 PM

बहुत खूब

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