अंधेरा

अंधेरा

आज अचानक अंधेरे से मुलाकात हो गई
कुछ खुली खुली सी बात हो गई।

मैंने पूछा, आजकल कहां गुम रहते हो?
वो बोला, मैं तो यहीं हूं, बस नजर नही आता
शायद तुम लोगों को मेरा साथ नही सुहाता
हर जगह रौशन कर रहे हो, पर मन के भीतर मुझे भर रहे हो।

मैं बोला, तुम तो तम हो तमस ही फैलाते हो
न जाने कैसे कैसे अपराध अपने अंदर छुपाते हो
मेरी इस बात पर वो खूब तमतमाया, फिर मुस्कुराया
कहने लगा तुम इंसान भी कैसा गजब ढाते हो
खुद करते हो अपराध, इल्जाम मुझ पर लगाते हो।

हां हैं कुछ दुराचारी, अनाचारी और व्यभिचारी
जो ओढ़ कर मुझको कई कांड कर जाते हैं
फिर पहन सफेद लिबास, मुझ पर ही इल्जाम लगाते हैं
पर मैं नहीं बिल्कुल भी उनके जैसा।

इधर देखो मैं तो तुम सबको सुकून देने आता हूं
अपने साथ चांद तारों की बारात भी लाता हूं
सोचो अगर मैं नही होता तो क्या ये पेड़ पौधे सोते
और इस खूबसूरत संसार में क्या रात दिन होते।

और एकदम से बिजली वापस आ गई
अचानक रौशनी से मेरी नजरें चुंधिया गई
शायद यही वो मौका था जिसकी उसे तलाश थी
मेरा हाथ छुड़ा कर वो पेड़ की पत्तियों में जा छुपा।

मैं मन ही मन मुस्कुरा रहा था
अपने अंदर के अंधेरे को भगा रहा था
आज मेरे अंदर रौशनी पुंज जगमगा रहा था
तमसो मा ज्योतिर्गमय समझ आ रहा था।।

आभार – नवीन पहल – १७.१२.२०२१ 🙏👍😀❤️

# प्रतियोगिता हेतु


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5 Comments

Shrishti pandey

18-Dec-2021 09:18 AM

Nice

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Swati chourasia

18-Dec-2021 12:02 AM

Very beautiful 👌

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Abhinav ji

17-Dec-2021 11:36 PM

Nice one

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