क़र्ज़दार
सर्द रातों की ठिठुरन की कर्ज़दार हो तुम
जो मैंने बिताएं हैं बिल्कुल तन्हाई में
उन अनगिनत मौन अभिव्यक्तियों की भी
ऋण है तुम पर
जो लुप्त हो गए मेरी सिसकती आहों के संग
तिल तिल कर जो पिघलता रहा मैं और
चाटते गए पल पल मुझे वक़्त के दीमक भी
पर रहा मैं तब भी केवल तुम्हारा ही बन कर
मुझे लेखनी के व्हाट्सएप ग्रुप में एड किजिए एडमिन साहेब...मेरा नम्ब
Akassh_ydv
17-Dec-2021 09:40 PM
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