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सर्द रातों की ठिठुरन की कर्ज़दार हो तुम जो मैंने बिताएं हैं बिल्कुल तन्हाई में उन अनगिनत मौन अभिव्यक्तियों की भी ऋण है तुम पर जो लुप्त हो गए मेरी सिसकती ...