जननी जन्मभूमि
जननी जन्मभूमि (काव्य)
हाय! जननी जन्मभूमि छोड़कर जाते हैं हम,
देखना है फिर यहां कब लौट कर आते हैं हम
स्वर्ग के सुख से भी ज्यादा सुख मिला हम को यहां,
इसलिए तजते इसे, हर बार शर्माते हैं हम।
ऐ नदी- नालों! दरख़्तों! पक्षियों! मेरा कसूर,
माफ करना, जोड़कर तुम से फरमाते हैं हम।
मां! तुझे इस जन्म में कुछ सुख न दे पाए कभी,
फिर जनम लेंगे यहीं, यह कौल कर जाते हैं हम।।
~राम प्रसाद बिस्मिल
[इस रचना का पूरा श्रेय राम प्रसाद बिस्मिल को जाता है]