लक्ष्य
कविता शीर्षक - लक्ष्य
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अधूरे से स्वप्न और अधपकी उम्र थी
मैं लड़की इतनी भी कमजोर न थी
अंतहीन संघर्ष के बाद का था नव हर्ष
इतने आसान नहीं थे वो कठोर से वर्ष
लक्ष्य असंभव दृढ़ प्रतिज्ञ सा
अनंत दुःख द्रौपदी के चीर सा
लगता तो है जैसे कल की बात हो
खुली आंखों से गुजारी लंबी रात हो
वो स्याह सी अमावस्या जीवन की
ऐसे ही नहीं बीती थी उम्र संघर्ष की
बाकी था एक नया इतिहास रचना
अनपढ़ से समाज में लिखना पढ़ना
वो मेरी सहेली मजाक में ताना मार गई
दिखा देना टीचर बन गर तू पढ़ लिख गई
ले लिया उसे मन ने चुनौती स्वीकार कर
बन कर दिखाऊंगी टीचर लक्ष्य साध कर
देहरी नहीं लांघ पाई गलियों की कभी
शहर में जाकर खाक छाननी थी अभी
नौकरी करके हर खर्च अपना उठाना था
मां का सर मुझे शर्म से नहीं झुकाना था
कितनी कसमें वादें साथ में रख देती थी
मां खाने के साथ हिदायतें बांध देती थी
कितने अभाव कितनी पीड़ाएं
कितना प्यार कितनी आशाएं
वो एक सांस में बता दिया करती थी
जिसका पल पल मैं ध्यान रखती थी
कहानी जीवट - जीवंत दोनों एक साथ थी
यहां तक आने की यात्रा आसान नहीं थी
गांव वालों के ताने मन में सहेज रखती थी
कुछ कर गुजरने का जज्बा साथ रखती थी
कुछ बनने का जुनून नहीं रुक पाया
आज सफर का खूबसूरत अंत आया
पढ़ लिखकर एक मुकाम हासिल हुआ
सोचा था वो सपना आज साकार हुआ
एक नाम एक पहचान अलग से कायम हुई
मेरी बनाई पगडंडी राजमार्ग साबित हुई
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मीनाक्षी कुमावत मीरा
सिरोही,राजस्थान
ऋषभ दिव्येन्द्र
10-Jun-2021 06:58 PM
वाह , खूब लिखा आपने 👌👌 बड़ी ही खूबसूरती से उकेरा है आपने इस रचना में अपने संघर्ष को 👌👌
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Nika
03-Jun-2021 09:44 PM
ख़ूबसूरती से लिखी हुई हृदयस्पर्शी भावपूर्ण रचना
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Kumawat Meenakshi Meera
03-Jun-2021 09:45 PM
Thanks Nika
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Shaba
03-Jun-2021 07:23 PM
लक्ष्य और संघर्ष एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक के बिना दूसरा अधूरा है। सुंदर प्रस्तुति।
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Kumawat Meenakshi Meera
03-Jun-2021 08:11 PM
आभार शबा जी
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