Roshan sharma

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नादान

अंजान तो नही पर दिल-ओ-जान भी नहीं हो
जो समझ न सको तुम इतने नादान भी नहीं हो।

किसे रास आती हैं जुदाई इस जमाने में यहाँ,
ये तड़प ना समझो इतने अनजान भी नहीं हो।

हर रात मुलाकात मुकम्मल होती थी ख्वाबों में,
इसे हकीक़त बना सको क्या वो इंसान नहीं हो।

इन वफ़ा बेवफ़ाई का क्या हिसाब रखे दिल
कैसे शक करें तुम ऐसे बेईमान तो नहीं हो।

दिल की चाहतों को तौलने की काबिलियत नहीं
नादानियों पर मर मिटो इतने मेहरबान तो नहीं हो।

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1 Comments

Vfyjgxbvxfg

26-May-2021 11:45 PM

Nice

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