बेख़ौफ़ हंसी
इतनी बेखौफ हंसी,
कैसे हँसती हो तुम।
डर नहीं लगता यूँ खुलकर मुस्कराने से,
छत पर गुनगुनाते हुए, गीले बालो को सुखाने से।
आईने में घंटो निहारती रहती हो खुद को,
डर नहीं लगता अपने आप को इतना चाहने से। पहली बारिश में बेखौफ भीगने से,
किसी छोटे बच्चे की तरह उछलती कूदती सी।
डर नहीं लगता कंधे से, दुपट्टे के सरकने का।
बदन को चीरने वाली , समाज की नजरो का.
पहली बार जब जोर से हंसी होगी तुम,
माँ ने कहा होगा धीरे हंसो तुम।
छत पर बाल सुखाते हुए जब गुनगुना रही होगी, पिता में कहा होगा अंन्दर चलो तुम.
सज संवरकर निकली होगी, जब घर से बाहर,
भाई ने टोका होगा।
समझाया होगा सबने कहा होगा,
लड़की हो तुम।
भूल गयी शायद,
बर्तन रसोई छोड़ देख डाला तुमने सपना,
हाथ में पेन लिये, एक नयी कहानी लिखने का.
हाँ , मैं नहीं पड़ना चाहती औरत - आदमी के वाद विवाद में.
मैं क्यों मांगू अपनी आज़ादी किसी और से,
बराबरी के हक़्क़ के लिए क्यों लडू।
जानती हूँ जब मैं ,
मै किसी से कम हूँ ही नहीं।
ईश्वर की कृति हूँ मैं
अधूरी नहीं सम्पूर्ण हूँ मैं।
इसलिए इतनी बेख़ौफ़ हूँ मैं।
सोनिया जाधव
#लेखनी प्रतियोगिता
Swati chourasia
30-Dec-2021 12:30 PM
Wahh bohot hi khubsurat hai rachna 👌👌
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Abhinav ji
30-Dec-2021 09:03 AM
बहुत ही बढ़िया और सही है
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