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आशिकी

इश्क के मंजर में आशिकी का फ़साना है
दौरे जहां में हर शख्स बस दीवाना है
वह बस आंखों से ही जाम पिया करते हैं
कागज़ के दौर में लफ़्ज़ों का ज़माना है।

कोई देख रहा तुमको तुम छिप रहे फिर भी
कोई सोच रहा इतना तुम भाग रहें फिर भी
ये इश्क की इंतहा वो मिट गया तुम पर
वो तो आशिक है तेरी आशिकी का दीवाना है।

हैं गालियां खाता दरों-दीवार पर हरदम
भटकता फिर रहा खाली इश्क के दम पर
तुमने देखा नहीं फिर भी जनाजा जा रहा दर 
तुमसे इश्क था उसको वो आशिक है दीवाना है।

संदीप कुमार मेहरोत्रा *शान*
बहराइच उत्तर प्रदेश

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26 Comments

Ravi Goyal

10-Jan-2022 08:47 AM

वाह बहुत सुंदर रचना 👌👌

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Sandeep Kumar Mehrotra

10-Jan-2022 09:08 AM

जी धन्यवाद आदरणीय

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Punam verma

09-Jan-2022 09:26 AM

Nice

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Sandeep Kumar Mehrotra

09-Jan-2022 01:29 PM

जी धन्यवाद

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Seema Priyadarshini sahay

09-Jan-2022 01:37 AM

बहुत खूब

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Sandeep Kumar Mehrotra

09-Jan-2022 08:36 AM

जी धन्यवाद

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