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कशिश

कशिश बाकी है...

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मुस्कुराती आंखें महकती सांसें
खामोशियों में सिमटती वो हंसी
खो गए उन सिलसिलों की कशिश बाकी है
 तेरी यादों के कारवां अब भी जारी है

कितनी अनकही फरियादे
अनसुनी रह गई
कितनी ही खामोशियां
अनपढ़ीं रह गई
छूटी हुई मुलाकातों की कशिश बाकी है
तेरी यादों के कारवां अब भी जारी है

कहीं बेतहाशा जिम्मेदारियां 
कहीं बेहद जज़्बात
किसी के पास नाम के हक है
कोई  चाहत नाहक नाम की
दूरियों के दौर में तेरे साथ की कशिश बाकी है
तेरी यादों के कारवां अब भी जारी है

अरसे बीत गए मुस्कुराती सुबह देखे
 खिलखिलाती शाम को ढलते देखे
तुम नहीं अब तुम्हारे ख्यालों की कशिश बाकी है
तेरी यादों के कारवां अब भी जारी है

कितनी बेसब्र आंधियां दबाएं बैठी हूं
कितने सब्र के समंदर छुपाएं बैठी हूं
न पिघल उम्र बेसबब खुशियों की कशिश बाकी है
 तेरी यादों के कारवां अब भी जारी है
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@ मीनाक्षी कुमावत मीरा
माउंट आबू, राजस्थान
 





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16 Comments

Mith

07-Jun-2021 06:03 AM

Nice

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Aliya khan

06-Jun-2021 10:57 PM

बहुत खूब

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Shaba

06-Jun-2021 08:42 PM

बहुत खूब लिखा आपने।

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Kumawat Meenakshi Meera

06-Jun-2021 10:38 PM

Thanks shabaji

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