नज़राना इश्क़ का (भाग : 42)
जैसे ही निमय और जाह्नवी गेट के अंदर घुसे, जानकी को निमय की हालत देखकर धक्का सा लगा। उधर निमय, दर्द के बावजूद जाह्नवी के साथ हाहाहीही करने में लगा हुआ था। जानकी घबराई हुई उन दोनों के पास पहुँची।
"निम तुझे क्या हुआ? सिर पे कैसा कपड़ा बांध रखा है! क्या हुआ?" जानकी ने घबराए हुए स्वर में पूछा।
"क… कुछ नहीं मम्मी…!" निमय हड़बड़ाहट में बोला।
"तुम बाहर क्यों गए थे? लड़ाई झगड़ा किया है क्या?" निमय का जवाब देख कर उनकी चिंता और गहरा गयी।
"अरे कुछ नहीं हुआ मम्मी! बेकार में परेशान मत हो.. वो तो आपके लाड़ले को ही शौक है बाहर घूमने का…!" जाह्नवी मुँह बनाते हुए बोली, यह देखकर निमय डर गया कि कही जाह्नवी सच न बता दे।
"क्या हुआ इसे?" जानकी ने दुबारा वही सवाल किया।
"कुछ नहीं…!" जाह्नवी मुँह बिचकाकर बोली। "ये जनाब, आपके लाड़ले, आपके सुपुत्र, अपने दम पर चलने की कोशिश कर रहे थे, मगर दिमाग तो सही है नही, इसलिये टांगे लड़खड़ाई और इन्होंने धूल चाट ली, मेरा मतलब जमीन पर गिर गया, तभी मैं पास में पहुँची और ये पट्टी कर दिया।"
"तो सीधा बोल दे ना इतना सस्पेंस काहे बनाती है..!" निमय ने मुँह टेढ़ा करते हुए उसे कंधे से धकियाकर कहा।
"चलो पहले पट्टी कराओ, और अब से बाहर निकलना बंद…!" जानकी ने सख्त स्वर में कहा।
"अरे मम्मा रुको तो यार..! इसे चोट थोड़ी लगी है, वो तो मैंने….!" कहते हुए जाह्नवी हंसने लगी।
"मुझसे शैतानी… रुक बताती हूँ मैं तुझे…!" जानकी ने थप्पड़ का इशारा करते हुए जाह्नवी को धमकाया।
"अरे पूरी बात तो सुनो…! आईडिया इसका था, धूल में लोट के.. मेरे दुपट्टे से बना दिया पट्टी…! मुझे अब इसके पूरे एक हजार रुपए चाहिए..हुंह..!" कहते हुए जाह्नवी ने अपनी गर्दन को जोर से झटका।
"क्यों रे… मुझसे शैतानी करता है?" जानकी ने निमय के गाल खींचते हुए कहा।
"वो तो ठीक है मम्मी पर इतने से कपड़े का एक हजार… ये तो गलत बात है ना..!" निमय मासूम बच्चा बनने की कोशिश करता हुआ बोला।
"तुम दोनों आपस में निबट लो.., मुझे और भी काम हैं!" कहते हुए जानकी अंदर की ओर चली गयी।
"थैंक्स पगली…!" कहता है निमय मुस्काया। "वो तो ठीक वक़्त पर तूने पट्टी चेंज कर दी वरना बैंड बज जाती..!"
"वो तो ठीक है पर पहले मेरे एक हजार निकाल, और ये बता इतनी सुबह पार्क में किससे मिलने गया था?" जाह्नवी ने उसे घूरते हुए पूछा।
"क..किसी से तो नहीं…!" निमय ने कहा, तभी उसका फ़ोन रिंग करने लगा।
"झूठ बोलना तो ठीक से आता नहीं, और जब नहीं आता तो बोलता क्यों है…!" जाह्नवी ने उसे घूरते हुए मुँह बिचकाया। निमय का फ़ोन रिंग कर रहा था मगर वह रिसीव नहीं कर रहा था। "उठा… बात कर ले..!" जाह्नवी ने जोर दिया।
"हेलो निमय जी… निम…!" फरी हड़बड़ाते हुए बोली, उसके स्वर में अधीरता और चिंता का मिश्रण था।
"जी..! कहिये..!" निमय ने सामान्य बने रहने की कोशिश करते हुए कहा।
"फरी है…?" जाह्नवी के कान में निमय धीरे से फुसफुसाया।
"कैसे हो आप?" फरी काफी चिंतित नजर आ रही थी।
"मैं बिल्कुल ठीक हूँ, आप बताओ.., ठीक है… सॉरी न आपसे बाद में बात करता हूँ…!" फरी को कुछ कहने का मौका दिए बिना निमय ने कॉल कट कर दिया।
"क्या हुआ?" जाह्नवी ने फिर पूछा।
"कुछ नहीं.. बस ऐसे ही कॉल किया था उसने!" निमय ने जवाब दिया।
"कमरे में चल पहले…!" जाह्नवी आदेशात्मक स्वर में बोली।
"क्या हुआ?" निमय आँखे फाड़कर उसे घूरे जा रहा था, अंदर ही अंदर उसकी हालत खराब हो रही थी कहीं जाह्नवी को सब पता तो नहीं चल गया, वो क्या रियेक्ट करेगी, यह सोच सोचकर उसकी दशा बिगड़ती जा रही थी।
"ये तो तू ही बताएगा कि क्या हुआ?" कमरे में पहुचते ही जाह्नवी ने उससे सच उगलवाने की कोशिश की।
"जो हुआ तेरे सामने हुआ अब मैं क्या बताऊँ?" निमय ने बला की मासूमियत दिखाई।
"ओ घोंचू… अबे यार तू जितना बड़ा गधा दिखता है असल में उससे भी बड़ा है। तुझे क्या मेरे माथे पर बेवकूफ लिखा दिख रहा है?" जाह्नवी ने अपने माथे को तर्जनी उंगली से दबाते हुए कहा।
"तो कौन सा बेवकूफ अपने माथे पर बेवकूफ लिखवा के घूमता है?" निमय ने कटाक्ष किया।
"तू पार्क क्यों गया था?" जाह्नवी ने सीधा सवाल किया।
"अबे यार अब इंसान घूमे फिरे भी न, अब क्या चाहती है तू?" निमय काफी तनाव में नजर आने लगा।
"घूमने फिरने को मना नहीं कर रही! ये बता वहां फरी क्या कर रही थी?" जाह्नवी ने उसकी आँखों में झांकते हुए पूछा।
"फरी….!" निमय चौंका।
"हाँ!?"
"मुझे कैसे पता, मैं तो तेरे ही साथ आया था।" निमय ने अनजान बनने का नाटक करते हुए कहा।
"पर गए अकेले थे, पहले वो वहां कार में दिखी और घर पहुँचते ही उसका कॉल आया, क्या ये कोई कोइन्सीडेंस है?" जाह्नवी ने किसी वकील की भांति प्रश्न किया।
"आखिर तुझे प्रॉब्लम क्या है फरी से….!" चिढ़कर निमय बोल पड़ा।
"कुछ नहीं! वो तो मेरी बेस्ट फ्रेंड है, इनफैक्ट मैं उसे अपनी भा…..!" कहते कहते जाह्नवी रुक गयी, उसे एहसास हुआ कि निमय काफी तनावग्रस्त होने लगा था।
"क्या…!" निमय सड़ा सा मुँह बनाये खड़ा रहा।
"कुछ नहीं घोंचू… मैं तो तेरी टांग खींच रही थी…!" जाह्नवी जोर से हँसते हुए बोली और कमरे से बाहर भागी।
"तेरी तो चुड़ैल….!" कहता हुआ निमय उसके पीछे लपका, मगर उसे पता था वह दौड़ नहीं सकता इसलिए अपनी चेयर पर जाकर बैठ गया और अपना मोबाइल देखने लगा। फरी के ढेर सारे मैसेज आये हुए थे, निमय यह देखकर हैरान था। आधे से ज्यादा बार उसने यही पूछा हुआ था कि निमय कैसा है!
"हे फरु! मैं ठीक हूँ यार एकदम…! पर बगल में शैतान खड़ी थी इसलिए बात नहीं कर पाया..!" निमय ने उन मैसेजस के रिप्लाई में मैसेज किया।
"अब उनको ऐसे कहिये आप, ये गलत बात है!" तुरंत ही फरी का मैसेज आया।
"ठीक है यार…! आप भी उसी का पक्ष ले लो…!" निमय ने नाराजगी जताई।
"पक्ष कहाँ से आ गया इसमें? आप हो या वो.. बात एक ही तो है..!" फरी ने मुस्कुराकर कहा। इस बात पर निमय के चेहरे की मुस्कान खिल गयी, फिर दोनों खूब टाइम तक आपस में बातें करते रहे।
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दो सप्ताह बीत गया, निमय हर रोज कोशिश करता कि फरी से अपने दिल की बात बोलेगा पर उसके सामने आते ही सारा जोश ठंडा पड़ जाता था। निमय ने इसके लिए एक नई ट्रिक अपनाया हुआ था, उसने अपने दिल की बातें एक कागज पर लिखकर आईने के सामने उसका रट्टा मार रहा था।
शाम का समय था, निमय हाथ में उसी कागज को लिए तैयार हो रहा था, उसने गहरे काले रंग का पैंट और सफेद शर्ट डाल रखा था। और सिर पर एक नीले रंग की टोपी पहना हुआ था।
"यू कैन डू इट निम…! तू कर सकता है, साला जितनी आसानी से प्यार हो जाता है उतनी आसानी से जाहिर क्यों नहीं होता…!" निमय खुद को मोटिवेट करते हुए खुदपर ही झल्ला रहा था।
"कहा जा रहा है हीरो?'" जाह्नवी कमरे में आते हुए पूछी।
"कहीं नहीं.. बस ऐसे ही..!" निमय ने उस कागज को अपने पीछे छिपाते हुए सामान्य स्वर में उत्तर दिया।
"ठीक है, टाइम से आ जाना..!" कहते हुए जाह्नवी कमरे से बाहर निकल गयी। "बाहर अब भी तेज धूप है.. इसका ख्याल रखना।"
"हाँ फरी आ जायेगी मुझे पिक करने…!" निमय ने उसे निश्चिंत रहने का आश्वासन देते हुए कहा। "चल यार निम… कुछ तो बोल ले… वो तेरे बिन कहे दिल की हर बात को जान लेती है, क्या इस बात को नहीं जानती होगी…?" निमय खुद में ही उलझा जा रहा था।
थोड़ी देर बाद निमय फरी के साथ कार में था, कार बेहद धीमी गति से चल रही थी, दोनों कभी एक दूसरे को देखते तो कभी बाहर की ओर देख रहे थे।
"क..कुछ कहना था..!" निमय ने गला खखारते हुए कहा।
"हाँ कहिये न..! दो हफ्ते से आप यही कुछ कहना है बोल रहे हैं, पर कह नहीं पा रहे हैं।" फरी उसकी हालत पर हँसते हुए बोली, पर निमय को अपने इतना पास पाकर उसकी बेचैनी भी बढ़ जाती थी। 'हे भगवान..! पता नहीं ये क्या कहेंगे..! क्या ये भी मुझे वैसे चाहते होंगे…!'
"तू लगातार दो हफ्ते से ट्राय कर रहा है, कुछ तो बोल निमय या रोज छोले ही खाते रह जायेगा…! अपने दिल की बात अपनी जान से नहीं कह पायेगा तो किससे कहेगा!" निमय खुद को किसी तरह समझा रहा था।
"क्या हुआ निम?" फरी उसे चिढ़ाने के अंदाज में बोली।
"कुछ नहीं…!" निमय उससे नजरे चुराता हुआ बोला।
"कुछ तो…!" फरी बड़े प्यार से बोली।
'पता नहीं क्यों सामने आते ही सारा रटा रटाया भूल जाता हूँ, दिल जैसे खाली हो जाता है, गले से शब्द ही नहीं निकलते.. सुकून बहुत मिलता है पर अपनी फीलिंग्स न जाहिर कर पाने के कारण घुटन भी होता है… निमय कुछ तो कर…!'
"आज भी छोले ही खाने है आपको?" फरी ने उससे हँसते हुए पूछा।
"ह..हाँ! यही तो कहना था मुझे आज छोले नहीं.. बस ऐसे ही घूमते हैं कही।" निमय ने हड़बड़ाकर कहा।
'इतनी देर इस बात को कोई नहीं सोचता निम! आप अपने दिल की बात कह क्यों नहीं देते… क्यों तड़पाते हो इतना?' अंदर ही अंदर फरी की दशा भी वही हो रही थी जो निमय की थी। निमय रोज की तरह एकदम चुपचाप सा बैठा हुआ था, फरी भी उसी की तरह बस चुप रहती। थोड़ी देर घूमने के बाद फरी उसे घर के पास छोड़कर वापिस चली गयी।
"शिट शिट शिट…! आखिर कब बोल पायेगा निमय…! उसके सामने जाते ही सारी बुद्धि कहाँ चली जाती है यार…! सभी लड़कियों के सामने एकदम सख्त बना रहने वाला लड़का उसके सामने पिघल कैसे जाता है, मुँह में दही जम जाती है, ऐसे तो तू अपने दिल की बात कभी नहीं बोल पायेगा निमय…!" निमय खुद ही खुद को झकझोर रहा था। "मैं आज बोलूंगा… मैं आज ही उसे अपने दिल की बात बताऊंगा…! पता नहीं वो क्या जवाब देगी पर अब अभी नहीं तो कभी नहीं…! अगर कुछ और दिन नहीं कह पाया तो ये अंदर का तूफान मुझे मार ही डालेगा… इसे बाहर निकलने ही देना होगा।" निमय मन ही मन दृढ़ निश्चय कर चुका था।
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रात में…..!
निमय काफी देर तक फोन लेकर टहलता रहा, और बैठकर कुछ सोचने लगा। फरी उसे गुड नाईट बोलकर ऑफ़लाइन जा चुकी थी मगर निमय के अंदर एक शोर सा मचा हुआ था। उसे समझ आ रहा था कि वह अपने के इस बिहेव से कही न कही फरी को भी हर्ट कर रहा था। वह काफी देर तक सोचता रहा.!
"तुम कभी कभी पूछती हो ना तुम मेरे लिए क्या हो? तो ये मैं कभी भी नहीं बता सकूंगा कि तुम मेरे लिए क्या हो! बस इतना जान लो कि तुम मेरे बिना बहुत कुछ हो सकती हो और मैं तुम्हारे बिना सिर्फ अधूरा होने के अलावा कुछ नहीं।
मैं हर रोज ये कहना चाहता हूँ.. कि अपने दिल की बात तुमसे कह सकूं, पर ये इतना मुश्किल क्यों है फरु? तुम मेरी बेस्ट फ्रेंड हो न, फिर मैं तुमसे भी ये बातें क्यों नहीं कह पाता, क्यों मेरे दिल में चुभन सा रह जाता है! मस्ती मजाक में मैं बहुत कुछ बोल जाता हूँ पर तुम्हारे सामने आते ही जुबान साथ देना बंद क्यों कर देती है? मेरे दिल में ये कसक, ये चुभन क्यों है फरु? इसे मिटा दो न…!
मैंने प्रेम पर कितना लंबा चौड़ा प्रवचन दे दिया, पर मुझे प्रेम का प भी पता नहीं है, मैं अगर जानता हूँ तो बस इतना कि तुम मेरी सांस हो, अहसास हो, ख्वाहिश हो, ख्वाब हो, ख्याल हो, तुम दूर होकर भी मेरे पास हो, तुम दिल हो, धड़कन हो, जान हो! सुकून, चाहत, राहत सब तुम हो, तुम ही मेरी ज़िंदगी हो….!!
मैं तुमसे बेइन्तहा मोहब्बत करने लगा हूँ, जब से तुम्हें देखा हूँ सिर्फ तुम्हारा होकर रह गया हूँ, अब तुम मुझे अपना बनाओ, या छोड़ दो… मेरे हाल पर जीने ले लिए, मुझे सब मंजूर होगा, जो भी नज़राना इस इश्क़ का मिलेगा।
हर रोज तुम्हारे सामने यही बोलने की कोशिश करता हूँ, पर... काश! कि मैं तुम्हें समझा पाता कि मेरी हालत क्या होती है, जैसे बिन कहे मेरी सारी बात समझ जाती हो ये क्यों नहीं समझी…!
मुझे तुम्हारे जवाब का इंतेज़ार रहेगा…! तुम्हारा जो भी फैसला होगा, मुझे मंजूर होगा। वैसे तो मैं अंग्रेजी के खिलाफ हूँ पर… आई लव यू..!
मैं तने प्यार करूं!
प्लीज सोच समझ के जवाब देना, मैं अगर आज अपने दिल की बात नहीं कह सका तो शायद कभी नहीं कह पाता, इसलिए जैसे भी टूटा फूटा समझ आया लिख दिया….!"
मैसेज सेंड करने के साथ ही निमय ने अपना फ़ोन स्विच ऑफ कर दिया, ना जाने क्यों उसके मन में अनजाना सा डर घिरने लगा था। वह फरी के ख्यालों में खोया, उसके जवाब के इंतेज़ार में बिस्तर पर पड़ गया।
क्रमशः….
Ali Ahmad
18-Feb-2022 05:56 PM
👍👍
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मनोज कुमार "MJ"
20-Feb-2022 02:11 PM
Thanks
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