अनाज
नव ग
लहू जलाकर जल बनता है
जल,जलकर बनती है हवाएं।
कोई न समझा किसकी खुशबू
महकाती है दशों दिशाएं।
एक सदी से बंजर भू पर
जिसने पसीने का दरिया बहाया।
स्वेदनदी में बोया कमल वो
फिर धरती का भूख मिटाया।
भाषाओं से ऊपर की है
इस अनाज की परिभाषाएं।
कोई न समझा किसकी खुशबू
महकाती है दशों दिशाएं।
किसके क़िस्मत में क्या मिलता
यह सब है ईश्वर के ऊपर।
मिट्टी से सोना उगवाता
है किसान इस भूमि पर।
उन स्वर्णों को रंग अनेकों
फल बनकर जन मन को लुभाएं।
भाषाओं से ऊपर की है
इस अनाज की परिभाषाएं।
कर्जों के तल में दबकर भी
माटी से नाता न तोड़ा।
बाढ़ में बहती फसल देखकर
अपने हृदय को हाथ निचोड़ा।
कैसे अब फसलों की खुशबू
मन चितवन को महकाएं।
भाषाओं से ऊपर की है
इस अनाज की परिभाषाएं।
दीपक झा रुद्रा
Shrishti pandey
03-Mar-2022 08:51 PM
Bahut khoob mahashay
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Seema Priyadarshini sahay
03-Mar-2022 04:45 PM
👏👏👏👏अद्भुत।जय हो आपकी लेखनी✍️
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Swati chourasia
03-Mar-2022 02:19 PM
Very beautiful 👌
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