Sapna shah

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पहचान

पहचान 


गुमनाम शहर का किस्सा बनकर ना रह जाऊँ ....
कागज़ की नाँव बनकर ना बह जाऊँ ....
जी गए हजारों गुमनामी में ...
क्यू उनकी कतार में अपना नाम मै लिखवाऊ..

अलग हैं ख्वाहिशे हमारी जमाने से...
कुछ हटकर जीना सीखा जिन्दगी से..
वक्त छूट गया हाँथों से  कुछ इस तरह 
फिसलती रेत हैं मुट्ठी से जिस तरह ...

क्यू कल में आज अपना बर्बाद करूँ 
इरादे बुलंद कर क्यू ना हरपल आबाद करूँ 
डूब कर एक बार फिर सूरज निकलता है 
हर रोज नए-नए रंग बिखेरता हैं 

ख्वाहिशे हजारों आँखो में लिए 
निकल पडे हम अपनी पहचान बनाने के लिए ....




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2 Comments

Author sid

22-Jun-2021 05:36 PM

वाह । बेस्ट

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Sapna shah

23-Jun-2021 10:15 AM

Thanks

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