विदाई
सुन्दर थी वो लड़ी
लगी थी वहां झड़ी।
सजावट थी चारों ओर
नाच रहे थे बादल और मोर
सजी थी दुल्हन,,
सजा था मंडप।
भीगा था आंगन ,,
गीला था अपनों का दामन,,,,
सूरज भी निकला था,
बादल भी आए थे ।
विदाई में उसकी,
मां - बाबुल ने भी आँसू बहाए थे।
बेबसी तो थी ही,
न दिखने वाली जंजीरें भी थी,
जिसने मां ,बाबा को जकड़ा था।
समाज की रीत ने ,
दो बहनों को पकड़ा था।
इस रीत को निभाने ,
वहां,,, बहुत अपने आए थे।
विदाई में उसकी,
बहन ने भी बहुत आंसू बहाए थे।
बहुत दिन चली रस्में,
मैंने भी दिल को संभाला था।
काम के बहाने,
कभी दूर हुई उससे,
फिर भी,
सारे वह पल ,
जो खास थे जिन्दगी में,
हमने साथ बिताए थे,
विदाई में उसकी,
मैंने भी आंसू बहाए थे।
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"अनु कौंण्डल"
Seema Priyadarshini sahay
10-Mar-2022 04:27 PM
बहुत बेहतरीन रचना
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Anu koundal
11-Mar-2022 12:59 PM
🙏🙏
Reply
Lotus🙂
10-Mar-2022 10:53 AM
बेहतरीन रचना
Reply
Anu koundal
11-Mar-2022 12:59 PM
🙏🙏
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