जीवन

जीवन

मिसरा किसी और का है, पर कैफियत मेरी अपनी

कल मिला वक़्त तो जुल्फें तेरी सवारुंगा।
आज उलझा हूं उलझे वक़्त को सुलझाने में।।

और वक़्त की गांठें सुलझाते सुलझाते, पता ही ना चला
कब जिंदगी हाथ से फिसल गई।
तेरी जुल्फ कांधे पे बिखर न सकी।
और जिंदगी की शाम यूं ही ढल गई।।

दिन बीते, साल बीते पर न डोर मुझ से संभल सकी।
वक़्त की आंधियों के आगे पतंग की कुछ न चल सकी।।
कल जो सोचा था, छू लूंगा बढ़ कर आसमां।
आज देखा तो पांव तले जमीन ही खिसक गई।।

तिनका था जो उड़ चला जब हवाओं को रुख कबूल था।
अब मिला जो खाक में, कुदरत का ही तो उसूल था।।
ये जीवन भी क्या है, तिनके सी तो कहानी है।
कभी अर्श पर कभी फर्श पर, बाकी सब फसाना है।।

आभार – नवीन पहल – ११.०३.२०२२ 


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7 Comments

Shrishti pandey

12-Mar-2022 04:02 PM

Nice

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Punam verma

12-Mar-2022 07:59 AM

Nice

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Abhinav ji

11-Mar-2022 11:29 PM

Very nice

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