Alok shukla

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कुछ बूंदें मेरे हक़ की हैं

कुछ बूंदें मेरे हक़ की हैं
कुछ बूंदें मुझ पर बरसेंगी
कुछ बूंदें मेरी आस हैं
कुछ बूंदें मेरी साँस हैं
मुझे अमृत की प्यास नही
मुझे अमरता की तलाश नही
ऐ घने बादलों में छुपे मेरे सरकार
कब तक यूं निहारता रहूं आपको
कब तक यूं पुकारता रहूं आपको
अब कंठ भी रूठ रही
अब श्वास भी छूट रही
कब रुकेगी ये आग की धार
कब ठहरेगी ये कुदरत की मार
इस धधकती धरती पर कुछ आशीर्वाद बरसा
इस दरकती जमीन पर कुछ नेमत की धार बरसा

कब तक प्यासा रहूं मैं...
कब तक अभागा रहूं मैं...
कब तक राहत की बूंदों से अभागा रहूं मैं...

स्वरचित
आलोक शुक्ला
आरंग
छत्तीसगढ़

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7 Comments

Swati chourasia

27-Jun-2021 08:07 PM

Nice

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Swati Charan Pahari

27-Jun-2021 06:35 PM

बहुत खूब

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बहुत ही सुन्दर रचना 👌👌

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