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शाम...
भाषा : हिन्दी
भाषा - कोटि - : कविता
तुम बिन
तरसे मेरे नैन...
दामन
ना काट मेरे पंख पिंजड़े के अंधेरों में
अनजान राहें
अजनबी सा लगता हूँ अब
कुछ बूंदें मेरे हक़ की हैं
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