ग़ज़ल
🌹*🌹*🌹*🌹ग़ज़ल 🌹*🌹*🌹*🌹
तिरछी नज़र को देख के मख़मूर हो गया।
दिल तुम से इश्क़ करने को मजबूर हो गया।
उनकी जफ़ा से शीशा -ए -दिल चूर हो गया।
रिसरिस के ज़ख़्म दिलका ये नासूर हो गया।
बदनाम हम हुए तो भला क्या हुआ सनम।
ऐश -ओ - तरब तो इश्क़ में भर पूर हो गया।
वो थे क़रीब दिल के तो दिल शाद था बहुत।
दिल उनके दूर जाते ही रन्जूर हो गया।
यूँ खिल उठा में देख के तेरी झलक सनम।
ख़ुश जैसे दाम पाते ही मज़दूर हो गया।
जिस से मुझे गुरेज़ था वो फैसला भी आज।
उल्फ़त में जाने जाँ तिरी मन्ज़ूर हो गया।
ग़मगीन मेरा दिल था बहुत दिन से दोस्तो।
देखा जो दिल ने आप को मसरूर हो गया।
इस दौर के बशर की ह़क़ीक़त है बस यही।
आए जो चार पैसे तो मग़रूर हो गया।
बे रोज़गार देखा जो बेटे ने बाप को।
अपनी सनद जलाने को मजबूर हो गया।
कैसे कहूँ है मुल्क तरक़्क़ी पे गामज़न।
हर बच्चा मेरे मुल्क का मज़दूर हो गया।
हम दम जिसे समझते थे अपना फ़राज़ हम।
दिल ले के वो हमारा बहुत दूर हो गया।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ पीपलसाना मुरादाबाद यू.पी.।
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Renu
30-Mar-2022 10:51 PM
बहुत ही बेहतरीन
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Sachin dev
30-Mar-2022 09:32 PM
बहुत ही सुंदर
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Haaya meer
30-Mar-2022 07:02 PM
बहुत खूब
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