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आहिस्ते

बरस  रहा   है  बुलांदी   पे  कहर    आहिस्ते।
निगाह ए जश्न मुकम्मल है सफ़र  आहिस्ते।

उसी    के    नाम   ज़िंदगी   में  ताज होती है।
शुमार ए इश्क़ पर जिसे हो ख़बर आहिस्ते।

मैं रख के शौक़ ए आदवत ज़मीं से क्या करता
सिहर उठी है मेरी जां ओ  जिगर   आहिस्ते।

मेरा भी फर्ज़ था उसको खुशी  दिलाने    को
नज़र  के पार जिगर  में है ख़बर    आहिस्ते।

मेरे  पहलु  में  सितारा  कभी  जो   आ  बैठा।
तभी से  होने  लगा   मैं  भी  क़मर आहिस्ते।

मेरे तलाश में  निकले  वो  कश्तियां   लेकर।
मगर    डुबाता     रहा  है  ये  लहर  आहिस्ते।

दीपक झा "रुद्रा"

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7 Comments

Abhinav ji

08-Apr-2022 11:18 PM

Very nice

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Seema Priyadarshini sahay

08-Apr-2022 04:30 PM

बहुत खूबसूरत

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Renu

08-Apr-2022 03:00 PM

🤗💐

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