मालविकाग्निमित्रम्-3
लब्धास्पदोऽस्माति विवादभीरोस्तिति क्षमाणस्य परेण निन्दाम्।
यस्यागमः केवलजीविकायै तं ज्ञानपण्यं वणिज वदन्ति॥
पर इस विवाद के विषय में रानी के सम्भावित पक्षपात के सन्देह से आशंकित होकर राजा भगवती कौशिकी तथा रानी के समक्ष ही विवाद के निर्णय को न्याय समक्ष दोनों को बुला भेजते हैं। यही ज्ञात होता है कि महाराज का पक्षपात हरदत्त की ओर है और महारानी का गणदास की ओर। अतः तटस्थ कोशिकी को ही सर्वसम्मत रूप से मध्यस्थ बनाया जाता है क्योंकि नाट्य निर्णय प्रयोग द्वारा ही सम्भव है। अतः महारानी की अनिच्छा होने पर भी आचार्यों के शिष्यों को नाट्य प्रदर्शन की आज्ञा दे दी जाती है और दोनों नाट्याचार्यों की शिष्याओं को नृत्य कला प्रदर्शन के आधार पर ही उनकी वरिष्ठता निर्धारित करने का निश्चय किया गया।
द्वितीय अङ्क
रंगशाला में वयोवृद्ध होने के कारण गणदास को सर्वप्रथम अपनी शिष्या मालविका के नृत्य प्रदर्शन का अवसर प्रदान किया गया मालविका के दर्शन के लिए राजा पूर्व से ही अधीर थे और जब साक्षात राजा ने मालिविका को देखा तो मन्त्रमुग्ध हो उसके सौन्दर्य को देखता ही रहा। राजा महारानी परिव्राजिका एवं विदूषक रंगशाला में मालविका का नृत्य देखते हैं। पारिवाजिका के आदेशानुसार मालविका चलित नृत्य प्रस्तुत करती है उसका नृत्य और गीत राजा को और व्यथित कर देता है। मालविका के उत्कृष्ट नृत्य के कारण प्राश्निक परिव्रजिका गणदास के पक्ष में निर्णय देती है हरदत्त की शिष्या का नृत्य प्रदर्शन उस समय नहीं कराया जा सका क्योंकि दोपहर के भोजन का समय हो गया था। प्रदर्शन के बाद धारिणी मालविका को राजा के सामने से शीघ्र दूर करने को आतुर दीख पड़ती थी। यही मालविका के प्रति राजा का पूर्वानुराग अभिव्यक्त होता है।
सर्वान्तः पुरवनिताव्यापार प्रतिनिवृत्त हृदयस्य ।
सा वामलोचना में स्नेहस्यैकामनीभूता॥
राजा का मन बहुत अशान्त था उसने विदूषक से बहुत शीघ्र ऐसा कोई उपाय ढूंढने के लिए कहा, जिससे उसका मालविका से मिलन हो सके। विदूषक ने बड़ी निपुणता के साथ बकुलावलिका को विश्वास में लेकर उससे मालविका के हृदय में राजा के प्रति प्रेम बीज बोने के लिए कहा।
Gunjan Kamal
10-Apr-2022 12:03 PM
👌👏🙏🏻
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