Lekhika Ranchi

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-कालिदास


मालविकाग्निमित्रम्-5 
 
 चतुर्थ अङ्क

मालविका के प्रेम में आसक्त और उसी के विषय में चिंतातुर राजा अन्ततः अपने हृदय की मनोव्यथा विदुषक से कहते हैं और मालविका विषयक कारावास का समाचार सुनकर अत्यन्त दुखी हो उठते हैं और मालविका को किसी भी प्रकार से मुक्त कराने के लिए विदूषक से प्रार्थना करते हैं। विदूषक ने एक उपाय सोचकर राजा के कान में बता दिया और कहा कि आज रानी धारिणी का समाचार जानने के लिए वहां जाइये क्योंकि उनके पैर में चोट आ गयी थी। राजा रानी धारिणी की चोट देखने के लिए उनके कमरे में जाते हैं और विदूषक स्वयं केतकी के काटे से सर्पदंश का चिन्ह बना कर वहां पहँच गया, जहाँ पर राजा और रानी धारिणी बैठे थे और वहां बताया कि वो महारानी के लिए पुष्प तोड़ने गया था कि तभी सर्प ने काट लिया। ऐसा सुन रानी ब्रह्महत्या के भय से अत्यन्त चितित हुई। राजा ने चिकित्सा के लिए उसे राजवैद्य ध्रुवसिद्धि के पास भेज दिया। ध्रुवसिद्धि के नाम पर विदूषक के उपचार के बहाने रानी की सर्पमुद्रा को मंगवा लिया और उस सर्पमुद्रा को माधविका को दिखा कर मालविका और वकुलावलिका को मुक्त करा लिया। उधर राजा भी मन्त्री से वाहतक से राजकार्य सम्बन्धी परामर्श करने के बहाने से रानी के पास से उठ बाहर चले आते है। पूर्व संकेतानुसार राजा, विदूषक मालविका और वकुलावलिका सभी समुद्रगृह में एकत्र होते है। राजा और मालविका को एकांत में वार्तालाप के लिए छोड़ कर वकुलावलिका वहीं छिप जाती है और विदूषक बाहर दरवाजे पर पहरा देने लगता है पहरा देते देते वही निद्रालु हो जाता है और स्वप्न में मालविका को राजा के सानिध्य में पाता है। राजा मालविका को बिल्कुल अपने सानिध्य में लिए हुए है

    विसृज सुन्दरि संङ्गमसाध्वसं, तव चिरात् प्रभृति प्रणयोन्मुखे।
    परिगृहाण गते सहकारतां त्वमतिमुक्त लताचरितं मयि ॥

और विदूषक सपने में बड़बड़ाता है-मालविका राजप्रिया बनो इरावती को राजप्रणय में जीत लो। इतने में वहां इरावती और निपुणिका आ जाती हैं स्वप्न में मालविका को इरावती से बढ़ने वाली बात को सुनकर कुपित होती है और विदूषक के उपर टेड़ेमेड़े लकड़ी के डंडे से खम्भे के द्वारा उसको डराती है जिससे कि सांप-सांप चिल्लाने लगता है। विदूषक का शोर सुनकर राजा उसकी सहायता के लिए बाहर आता है। मालविका रोकती है कि अचानक बाहर मत निकलिए वहां सांप है। इरावती एकाएक राजा के पास जाकर कहती है कि आज दोनों का दिवाभसार हो गया क्या? सभी इरावती को वहाँ देखकर घबरा जाते हैं। इस प्रकार सब कुछ देखकर इरावती अत्यन्त क्रुद्ध हो जाती है। राजा इरावती को बहुत समझाता है कि

    नार्हति कृतापराधोऽप्युत्सवदिवसेषु परिजनो बन्धुम्।
    इति मोचिते मयैते प्रणिपतितुं मामुपगते च॥

किन्तु इरावती न मानी और अपनी परिचारिका से रानी धारिणी के पास संदेश भेज दिया कि आपका पक्षपात देखकर मुझे विश्वास हो गया कि आपकी सहायता से ही इन दोनों का मिलाप हुआ है। उसी प्रकार एक दासी ने आकर समाचार दिया कि कुमारी वसुलक्ष्मी को बन्दर ने डरा दिया है, जिससे वह रोना बन्द ही नहीं कर रही है। मालविका और वकुलावलिका को छोड़कर सभी चले जाते है। तभी मधुरिका (मालिनी) आकर बताती है कि अशोक पाँच रातों के भीतर ही पुष्पित हो उठा है प्रसन्न मालविका वकुलावलिका के साथ रानी धारिणी को यह समाचार देने तथा अपना पारितोषिक प्राप्त करने चली जाती है।

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1 Comments

Gunjan Kamal

10-Apr-2022 12:04 PM

👌👏🙏🏻

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