Lekhika Ranchi

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-कालिदास


कुमारसंभवम्-4 
 
 तृतीय सर्ग
कामदेव के उपस्थित होने पर देवराज इन्द्र ने उन्हें आदरपूर्वक अपने पास बैठाया। कामदेव इन्द्र से विनम्र होकर उनकी चिन्ता का कारण ज्ञात करने लगे। कामदेव अपनी वीरता की प्रशंसा करते हुए बोले, कि मैं शिवजी तक को अपने वाणों का कौशल दिखा सकता हूँ। देवराज इन्द्र ने कामदेव को उत्साहित करते हुए कहा कि ब्रह्मा जी से ज्ञात हुआ है कि महादेव से उत्पन्न पुत्र देवताओं का सेनापति बनाया जाय तो देवताओं की विजय अवश्य होगी। महादेव का वीर्य धारण करने की क्षमता केवल पर्वतकन्या पार्वती में ही है। पार्वती अपने पिता से आज्ञा प्राप्त करके महादेव की सेवा में लगी हुई हैं। आप अपने मित्र बसन्त के साथ देवताओं का यह कार्य अवश्य करें, इससे आपको यश प्राप्ति होगी। इन्द्र की आज्ञा पाकर कामदेव अपने सखा बसन्त के साथ उस स्थान की ओर गये, जिधर शिव समाधि लगाये बैठे हुए थे। बसन्त ने प्रचण्ड रूप से अपना प्रभाव प्रदर्शित किया। पशु-पक्षी, देव, यक्ष, किन्नर, मानव तथा ऋषि-मुनियों में भी काम विकार उत्पन्न होने लगा। परन्तु महादेव निर्विकार भाव से समाधि में मग्न बैठे रहे। नन्दी द्वारपाल के रूप में पहरा दे रहा था। उसने सभी गणों को सतर्क कर दिया, किन्तु नन्दी की दृष्टि को बचाता हुआ कामदेव उस स्थान पर पहुँच गया, जहाँ शिवजी समाधि लगाये बैठे थे। शिव के तेजस्वी रूप को देखकर कामदेव भयभीत हो गया तथा उसके हाथ से धनुष-वाण छूटकर गिर गये। उसी समय मालिनी और विजया नाम की वन-देवियों के साथ पार्वती पर कामदेव की दृष्टि पड़ी। पार्वती का सौन्दर्यावलोकन के पश्चात् कामदेव के मन में महादेव को जीतने की अभिलाषा पुनः बलवती हो गयी। ठीक उसी क्षण पार्वती महादेव के आश्रम के द्वार पर उपस्थित हो गयीं। ठीक उसी समय महादेव ने भी परमेश्वर की परमज्योति का दर्शन करके अपनी समाधि तोड़ दी। नन्दी ने समाधि खुली होने पर प्रणाम करते हुए पार्वती का परिचय कराया। महादेव ने पार्वती को असाधारण पति प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया। पार्वती भक्ति भाव से महादेव के गले में कमल बीजों की माला पहना रही थीं, उसी समय उचित अवसर जानकर कामदेव ने ”सम्मोहन“ नामक अचूक बाण धनुष पर चढ़ा लिया। पार्वती को देखकर शिव के मन में कामविकार उत्पन्न होने लगा। परन्तु महादेव ने अपनी चंचल इन्द्रियों को वश में करते हुए चारों ओर दृष्टिपात किया। जब उन्होंने लक्ष्य साधे हुए कामदेव को देखा, तब अपने तप में बाधक बने कामदेव पर वह अत्यधिक क्रोधित हुए। महादेव ने अपने तृतीय नेत्र की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया। महादेव ने तप में बाधक स्त्र्यिों का साथ छोड़ देने का निश्चय किया। वे उसी क्षण अपने गणों के साथ अन्तधर्यान हो गये।

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