Lekhika Ranchi

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-कालिदास


कुमारसंभवम्-5 
 
 चतुर्थ सर्ग
इस सर्ग में कामपत्नी रति का करुण विलाप है। रति कामदेव के सहवास काल की स्मृतियों का स्मरण करके विलाप करती है। वह कामदेव के बिना अपने जीवन को अधूरा समझती है। वह अपने पति के मित्र बसन्त से अपनी चिता तैयार करने का आग्रह करती है। उसी समय आकाशवाणी होती है। आकाशवाणी द्वारा रति को सांत्वना दी जाती है कि उसका पति कुछ दिनों बाद उसे अवश्य मिल जायेगा। ब्रह्मा के शापवश कामदेव शिव के तृतीय नेत्र से भस्म हुए हैं। जब पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव उनके साथ विवाह कर लेंगे, तब कामदेव को पूर्ववत् शरीर देने की कृपा करेंगे। आकाशवाणी सुनकर रति ने अपना शरीर त्यागने का विचार छोड़ दिया।

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1 Comments

Gunjan Kamal

11-Apr-2022 03:55 PM

Very nice

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