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दामन





लोग कहते हैं   कि  मैं  आवारा  हूँ
बस उन्ही की  ठोकरों  का मारा हूँ।

बह रहें हैं सब इधर, यूँ ही बेपरवाह
अरे! मैं भी तो उसी नदी का किनारा हूँ।

जरूरत क्या अब, कि कोई समझे मुझे
अब मैं थोड़ी न कोई, तेरी तरह बिचारा हूँ।

दामन छुड़ा लिया सबने अपना-अपना
मैं गैरो का नहीं, अपनो का ही मारा हूँ।

अब भी तरस नहीं आतीं मेरे हाल पर
जिधर भी गया, हर ओर बेसहारा हूँ।

नासमझ कहते थकते नहीं लोग मुझे
समझकर ही तो आज इतना खारा हूँ।

"मन" ना कर फ़िकर अब तू भी किसी की
ज़हर हैं सब, आज मैं भी ज़हर उतारा हूँ!




#MJ
#प्रतियोगिता

©मनोज कुमार "MJ"

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11 Comments

Aliya khan

02-Jul-2021 10:02 AM

वाह

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खूब लिखा आपने 👌👌👌👌

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Niraj Pandey

01-Jul-2021 06:03 PM

वाह ज़बरदस्त👌

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