Alok shukla

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शाम...

#शाम


दिन की चुभती धूप के बाद पसीना पोछती शाम
घड़ी के कांटों में ठहरती निगाह को राहत की सांस दिखाती शाम
इंतजार करती आंखों में खुशियों की चाबी भरती शाम
हसरत भरी निगाह की जायज मांगें पूरी करती शाम

शाम एक सुखद अहसास की पुड़िया है
इस पुड़िया में अपने प्रियतम से मिलने की आस है
दिन भर प्रेयसी से दूर प्रेमी जब शाम की छटा देखता है
शाम को प्रेमी की आंखों में प्रीत की मौज साफ साफ नजर आती है

गर्मी की तपस को शाम की नर्मी शीतल कर जाती है
तिमिर से पहले शाम अपने अदाओं से सबको रंग जाती है
शाम का होता अलग ही गुरुर 
हवाओं में फैली शाम की महक हर दिल को महका जाती है

स्वरचित
आलोक शुक्ला
आरंग
छत्तीसगढ़



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1 Comments

Vfyjgxbvxfg

06-Jul-2021 01:14 AM

बेहद खूबसूरत रचना

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