मजदूर
जीवन को संघर्षों का जरिया जिसने सिद्ध किया।
खुद के मन के युद्ध भूमि पर खुद से जिसने युद्ध किया।
जो पावक को पीते हैं बस एक निवाला के खातिर।
वही गगन भी ओढ़े अपने एक दुशाला के खातिर।
अपने भुजदंडो के बल पर पर्वत को भी सड़क बनाया।
और खाइयों को भर भर कर सरल सुगम सुरभित पथ पाया।
उसने बंजर भूमि को भी उर्वरता का पाठ पढ़ाया।
लहू जला तो स्वेद बना फिर माटी ने फूलों को पाया।
उन फूलों से जगी आस्था जग ने पत्थर देव बनाया।
किंतु कोई कवि हुआ क्या? जिसने मजदूरों को गाया।
बात विडंबित है तथ्यों पर बात करूं तो क्या सुन लोगे?
यही सोचकर आज लिखा हूं तुम उनकी ये दशा सुनोगे!!
आसमान को उसने ओढ़ा अक्सर वायूपान किया।
जब सूरज दहकाया दुनियां उसने धूप स्नान किया।
विकसित भारत के सपनों को पंख वही देते आया है।
जो अपने हाथों के छाले देख देख मुसकाया है।
उसके घर में रोटी देकर आँतों की अब आग बुझाओ।
हे भारत! के जननायक उनके घर भी पानी पहुंचाओ।
उनकी संतानों को अच्छी शिक्षा व रोजगार मिले।
ताकि विकसित भारत को उन्नत ऊर्जित संसार मिले।
बहुत कठिन है ख़्वाब आंख में जिंदा रख मजदूरी करना।
अपने मन के चाहोे से निराधार हो दूरी करना।
संस्कार पलती है जिनकी फटी पुरानी आंचल में।
वो आधा चंदा बन असमय छुप न जाए बादल में।
इस भारत के अस्मितपन को मजदूरी का नाम न दो।
भारत का अस्तिव उसी से मजबूरी का नाम न दो।
पर्वत पर्वत खेत बना उनके ही अरमानों से।
भारत भारत बना हुआ है जिनके स्वाभिमानों से।
जिसने युद्ध किया धरती पर सूरज के दहके ज्वालों से।
आज करो सम्मानित उनको पुष्प नियोजित मालों से।
©®दीपक झा "रुद्रा"
Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI
02-May-2022 10:39 PM
Wah
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Shrishti pandey
02-May-2022 09:31 PM
Very nice
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Seema Priyadarshini sahay
02-May-2022 09:22 PM
बहुत खूबसूरत
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