आरंभ
आरंभ
एक अंत नही आरंभ है ये
एक नई सुबह प्रारंभ है ये
है पसरा चारों ओर ही मौन
नहीं पास कोई करे बात भी कौन।
माना है अंधकार घनघोर बड़ा
है सुबह नहीं अब दूर जरा
बस चिंता को तू चीर जरा
एक लौ तू लगा एक दीप जला।
दुख की चट्टान बड़ी तो क्या
हिम्मत रख आगे कदम बढ़ा
हैं हाथ तेरे फौलादी घन
जोश दिखा एक चोट लगा।
है हवा में घुलता हलाहल
करती है मौत भी कोलाहल
इस सूने बंजर बाग में तू
एक अलख जगा, नई पौध लगा।
विश्वास तुझे खुद पर रखना होगा
एकांत में खुद से मिलना होगा
ये समय ब्रह्मांड भ्रमण का नहीं
खुद अंतर्मन में उतरना होगा।।
आभार – नवीन पहल – ०६.०५.२०२२🌹🙏😎🌹
# प्रतियोगिता हेतु
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Reyaan
09-May-2022 05:06 PM
Very nice
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Neelam josi
07-May-2022 06:42 PM
बहुत खूब
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Punam verma
07-May-2022 07:40 AM
Nice
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