जीवन
शीर्षक:- "जीवन नव किसलय हुआ नहीं"
जीवन नव किसलय हुआ नहीं!
मन भ्रमित हुआ है अंधकार में!!
रश्मिया कहीं पर दिखीं नहीं!
मद मस्त रहा मानव खुद में!!
फिर पंखुड़ियाँ कभी खिलीं नहीं!
जीवन नव किसलय हुआ नहीं!
जिन शाखाओं पें अभिमान हमें!
उस फल के हम हकदार नहीं!!
जो जड़ चेतन से अलग हुआ!
उसका पुनः निर्माण नहीं!!
जीवन नव किसलय हुआ नहीं!
उड़ते पतंग के जैसे मानव!
सदैव युवती के पीछे भाग रहाँ!!
वर्तमान चौपट कर अपना!
और भविष्य को तलाश रहाँ!!
जीवन नव किसलय हुआ नहीं!
जो रिश्तों के धागे टूट गये!
फिर आज कहाँ जुड़ते है!!
खुद में मशगूल मानव इतना!
माँ-बाप तक यहाँ भूलते है!!
जीवन नव किसलय हुआ नहीं!
सम्पूर्ण विश्व में नाम हो!
अपना सभी यही चाहते है!!
इस तन को कष्ट दिये जरा!
सब फल की आशा रखते है!!
जीवन नव किसलय हुआ नहीं!
स्वरचित एवं मौलिक रचना
नाम:- प्रभात गौर
पता :- नेवादा जंघई,प्रयागराज
मोबाईल नं:- 9889728447
🤫
11-Jul-2021 12:30 AM
नाइस....! खूबसूरत
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Niraj Pandey
11-Jul-2021 12:28 AM
बहुत खूब👌
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Ravi Goyal
10-Jul-2021 11:50 PM
वाह बहुत शानदार 👌👌
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