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Gazal

गमें-दिल मेरा बढ़ाते तो कुछ और बात होती,
तुम बाम पर न आते तो कुछ और बात होती।

दिल में लगी जो आतिश सोजिश बनी है कबसे,
तुम गर उसे बुझाते तो कुछ और बात होती।

बस हम तुम्हें मनाये ये नहीं है तौर-ए-उल्फ़त,
कभी हमको तुम मनाते तो कुछ और बात होती।

लहजे से उसके दम टपकता है रस गुलों का,
वो शेर गुनगुनाते तो कुछ और बात होती।

तेरे बदन के बारे बताया किसी ने ऐसा,
हम वो बात ज़बाँ पे लाते तो कुछ और बात होती।

चुप करके नग़मा-गर को उसने कहा था 'तनहा',
की कुछ तुम सुनाते तो कुछ और बात होती।

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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13 Comments

Shrishti pandey

24-May-2022 10:34 AM

Nice

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Fareha Sameen

18-May-2022 12:20 PM

Very nice

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Raziya bano

17-May-2022 12:29 PM

Bahut sundar

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