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Tanha raah ka raahi

बरस कर के बून्द बून्द पहाड़ों में रो पड़ी,
और फिर ये नदियां सारी चटानो में रो पड़ी।

अमीर ऐ शहर हँसे थे मिम्बर पे जबसे ये है,
की आवामें-मुल्क़ सारी एहतिजाजों में रो पड़ी।

जबसे हुआ हूँ मैं भी तस्वीर किसी के दिल की,
फिर तस्वीर एक यारों दीवारों में रो पड़ी।

इनको भी खू थी काँटों की, बस कांटें सहज थे,
और यकायक पड़े जो फूलों पे तो पाँव में रो पड़ी।

मेरी नज़र में साहिब वो आदमी बुरा है,
जो सबक़ ना ले इससे की किन वक़्तों में रो पड़ी।

सबके ही सामने जो हँसती थी, गा रही थी,
फिर लगाकर गले से मुझको कमरों में रो पड़ी।

कोरोना ने हमको ऐसा मंज़र दिखाया जिसमें,
गाँव थे आबाद सारे और शहरों में रो पड़ी।

आया है जब भी 'तनहा' ख़याले-परी उसको,
फिर बहारें तमाम उसकी आंखों में रो पड़ी।

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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10 Comments

Neelam josi

21-May-2022 03:45 PM

Very nice

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Seema Priyadarshini sahay

19-May-2022 05:59 PM

बेहतरीन

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Haaya meer

19-May-2022 12:57 PM

Amazing

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