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गलती

ये सरासर ग़लती की है,
जो आपने रौशनी की है।

लगाके दिल तुझसे सबने,
मेरी तरहा शायरी की है।

आबशार की हयात तुमने,
तुमने फिर तिश्नगी की है।

हौले से मुस्कुराकर आपने,
गुलों से फिर दुश्मनी की है।

आपने सोचा मुझको फिरसे,
इस बात ने मुझे गुदगुदी की है।

किसने आसमाँ को पानी दिया,
किसने बहारे शबनमी की है।

किसने निकाला सूरज फिरसे,
रात किसने सुरमई की है।

अपना यकी सुख़न में कहके,
'तनहा' आपने मुक़र्रमी की है।

Tariq Azeem Tanha

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6 Comments

Raziya bano

11-Sep-2022 07:25 PM

Nice

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Wahhh Outstanding मजा आ गया लाजवाब

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Shnaya

11-Sep-2022 06:54 PM

बहुत ही सुन्दर

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