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सम्पर्क स्वयं से


सम्पर्क स्वयं से


खुद से भी कर लो सम्पर्क कभी कभी!

हमेशा सबके पीछे भागती  रहती हो।

बातें भी कर लिया करो खुद से कभी कभी

रोज दिनचर्या की तमाम बातें करती रहती हो।


क्या है तुम्हें पसंद सोचा है कभी!

उन्हें क्या पसंद हैजिन्हें तुम चाहती हो..।

ये बात तुम्हें भली भांति ज्ञात रहती हैं,

और तुम उनकी पसंद को अहमियत देती हो।


अपना भी ख्याल रख लिया करो कभी -कभी!

जैसे सबका ख्याल रखती हो उन्हें देखकर।

अपने बारे में भी सोचा करो कभी कभी!

क्या कोई कभी सोचता है तुम्हारे लिए।


समय निकाल लिया करो थोड़ा सा खुद के लिए भी!

काम तो निरंतर चलने वाली वाली प्रक्रिया है।

आईने के सामने ख़डी होकर निहार लिया करो यूँ ही!

याद करो नई लिपस्टिक कब तुमने लिया है।

थोड़ी सज संवर कर अपने रूप पर इतराओ!

याद करो कोई तुम्हारे रुप की तारीफ किया करता था।


दो पल फुर्सत के बाँध  लो कसकर आँचल में अपने!

हौले हौले कोई गीत कोई ग़ज़ल गुनगुनाओ।

कोई अच्छी सी साड़ी निकाल कर संदूक  से,

सोचो पिछली बार उसे तुमने कब पहना था।


श्रृंगारदानी में धूल खाती चूड़ियों से कह दो!

अब और प्रतीक्षा मत करो मेरी।

 हाथ के बदरंग कड़ों को निकाल कर पहन लो उन्हें।

खनक  खनका  दो घर आँगन और देहरी।


अकेले ही घूम आया करो कभी कभी!

प्रकृति के संग भी कुछ पल बिता लिया करो।

सखी सहेली कोई मिल जाये तो

हँस बोल खिलखिला लिया करो.।


सम्पर्क खुद से भी करो तो जीवन से स्वतः सम्पर्क हो जायेगा।

पहचान लोगी स्वयं को तो मन में मधुर सुगंधित पुष्प खिल जायेगा।

समेट लेना ह्रदय में सुवासित मलय बयार झोंको को।

और उड़ना उन्मुक्त आकाश में सम्पर्क करना नीलगगगन से.।


जीवन में कर लीजिये, निज से भी सम्पर्क।

ज्ञात तथ्य हो जायगा,  मन अपना है स्वर्ग।.


स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह '





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8 Comments

Seema Priyadarshini sahay

23-May-2022 12:15 AM

बेहतरीन

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Punam verma

22-May-2022 10:10 AM

Nice

Reply

Neelam josi

22-May-2022 08:49 AM

👏👏🙏🏻

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