Add To collaction

ख़ामोशी

ख़ामोशी

प्रतियोगिता के लिए


लब खामोश थे मेरे

बोलने की वज़ह देते

कभी कुछ कह सकूँ बेहिचक 

बस इतना सा हक दे देते

छोड़ कर लक़ब को अपने

कभी तो दोस्त समझा होता

यकीन मानो  या ना मानो

तुम रब का जगह ले लेते।

कभी भी सूनी शामों में

बैठे क़्या नज़दीक आकर के

भूले से दो शब्द भी तकल्लुफ के 

कह दिए होते।

अब जब शाम जीवन की

पतझर का बसेरा है

आकर धीरे से कहते

तुम्  से कुछ कहना है

क़्या अब मैं सुनू बातें

इस गोधूलि बेला में

सफ़र तय कर लिया इतना

मेरे संग जीवन ढंग से जी लिए होते.


स्नेहलता पाण्डेय 'sneh'


   25
8 Comments

Shnaya

28-May-2022 12:48 PM

बेहतरीन

Reply

Reyaan

28-May-2022 12:02 AM

बहुत खूब

Reply

Chirag chirag

27-May-2022 05:25 PM

Nice

Reply