Sapna shah

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आजादी

मुक्त हवाओं का परिंदा बन ऊडना चाहूँ 
पंख फैलाकर आसमान को चूमना चाहूँ 
बादलों पर पैर रख चाँद को छु लूँ 
टिमटिमाते तारों संग झूम लूँ 

ख्वाहिशे बेहिसाब दिल में सजी 
बांवरा मन आजाद होना चाहें अभी 

बेडियाँ पाँव में पायल बनकर सजी 
बंधन चाहकर भी तोड ना सकूँ कभी 
रित रिवाज कसकर बांधते हमें 
खुशी खुशी ख्वाब मै दफनाती जाऊँ 

कैसी मजबूरी हमारे भाग्य आयी 
चौखट लांघती तो कुलक्षणा कहलायी 
घर की लक्ष्मी कह बांधती सीमाएँ हमें 
घुट घुट कर चार दीवारों में जी ना पाए 

खुली हवाएँ उमंग भर जाए 
शरारते करना मन चाहे 
तोड़ कर बंदिशे अब मैं जीना चाहूँ 
आजादी का सच्चा जश्न में तभी मनाऊँ ....।।




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4 Comments

🤫

19-Jul-2021 09:15 PM

वेरी नाइस....!

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Sapna shah

20-Jul-2021 02:32 PM

Thank you 😊

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Swati chourasia

17-Jul-2021 05:25 PM

Very beautiful 👌

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Sapna shah

17-Jul-2021 05:54 PM

Thank you 😊

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