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सीख

है सुनिश्चित जनम मरण, मनवा क्यों तू सोंचे।
चिंता से चतुराई घटे, केश बिरथा क्यों नोंचे।।
कर्म तेरा अधिकार है, फल की चिंता छोड़।
भर भर देंगे ईश्वर तुमको, कर्म से रिश्ता जोड़।।

जो नर श्रद्धावान यहाँ, प्राप्ति ज्ञान की होत।
अज्ञानता की यान में,अशांत मन क्यों ढोत।।
सत्संग है कुबुद्धि हरती,वाणी सत्य से सींचती।
ज्ञान पापों से करते दूर,चहूँ दिक् बढती कीरती।।

करले संगत सज्जन के,मिलेगा सच्चा ज्ञान।
गुणी विवेकी बनोगे तुम, कहाओगे श्रद्धावान।।
विद्या देती विनय सबको, मिलता सबका मान।
विद्या सम कोई चक्षु नही,तम हरती दीप समान।।

सबको अपना जानों तुम, करो सभी का आदर।
कहना सबसे मीठी वाणी,कभी न होगा अनादर।।
मान मिले सम्मान मिले, बनके रहो नित प्रिय।
लगे रहो हित करने सबके, करम न हो अप्रिय।।

झुकाना है गर संसार को, सीखें सर्वदा झुकना।
आँधी आए तूफाँ आए,मग में कभी न रूकना।
कोई रोके कोई टोके, मत किसी की सुनना।
करना है कर्म तुमको, सदा हृदय में गुनना।।

कर्म अच्छा करते जाना,करना कभी गुमान नही।
राह मिलेगी फूलों की, मिलेगा न चट्टान कहीं ।।
दोष न देना जगवालो, मुझको कुछ नही आता।
लिख देता मन की बातें,जो मेरे मन को भाता।।

बनके तारा एक दिन मैं, घोर निशा में चमकूँगा।
बनकर फूल बगिया में, बहती पवन संग महकूगा।।
उडता रहूँ उन्मुक्त गगन में,पक्षी बनने की कामना।
मिलती रहे हमें सदा,विप्र आपकी शुभकामना।।

© ® 
आचार्य तोषण कुमार चुरेन्द्र धनगांव 
डौंडीलोहारा छतीसगढ ४९१७७१

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8 Comments

kashish

12-Feb-2023 11:21 AM

nices

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madhura

01-Feb-2023 02:33 PM

nice

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shweta soni

17-Jul-2022 11:43 PM

Nice 👍

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